“मेरे बचपन की यादें”
मन क्यों विचलित होता है,
याद कर मेरा वो दिन,
काश! लौट आता फिर से,
बीत गया है, जो बचपन।
बचपन की यादें सारी,
अनंत टीस पहुंचाती है,
बीते दिनों की बातें,
सारी रात जगाती है।
गुम हुए आंखों के सपने,
भटक गए है अपनी राह,
जिस पर कभी पहरा न था,
आज लगे है, लोग हर जगह।
बाद पतझड़ के बहार बसंत,
जब हरियाली लेकर आती है,
खींच मुझे ले जाती है,
बचपन की याद दिलाती है।
मेरे बचपन की यादें,
कभी धूप, कभी छांव लगे,
मुझको आज सब कुछ,
मेरे बचपन का गांव लगे।।
राकेश चौरसिया