*** मेरा पहरेदार……!!! ***
“”” न कोई रिश्ता…
न कोई रिश्तेदार…!
न कोई सगा-संबंध…
न आस-पास-पड़ोस के मित्र-यार…!
न जाने कहां से तू आया…
हिलाता हुआ पूंछ,
दोस्ती का अहसास दिलाया…!
पल भर में बदला ये मन आवारा…
प्यारा एक दोस्त बन,
इंसान और जानवर की दूरी मिटाया…!
आदत से सगा लगता है…
जो पुचकारे प्यार से,
उसी के संग रंगा रहता है…!
जाऊँ मैं बाहर जब घर से…
तू सदा मेरा खैरियत चाहता है…!
और आ जाऊँ जब घर में…
किसी अपने की तरह,
घूम मेरे इर्द-गिर्द,
खुशहाली का एहसास दिलाता है…!
वादा कर जाता है तू मुझसे…
किसी मुसीबत में हरदम साथ देने का,
देता कभी दगा नहीं…
किसी औरों की तरह…!
जो मिल जाता है मुझसे…
कुछ रुखा-सुखा,
उसी में खुश रह जाता है…!
जो होता नहीं हितैषी…
तू हमेशा मुझे चौकन्ना कर जाता है…!
होता नहीं जो हितकारी मेरा….
परोसा हुआ विषाक्त भोजन,
खुद चख चटकार लगा…!
मेरे एक-एक दाने का…
वफादारी नीभा सदा,
अपनी प्राण की आहुति दे जाता है…!
न कोई रिश्ता…
न कोई रिश्तेदार है…!
तू ही मेरा… तू ही मेरा…
सच्चा पहरेदार है…!
सच्चा पहरेदार है…!! “”
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