मेरा घर
जैसे ही मनोभाव साझा होते हैं, दिल से दिल बात करने लगता है।
एकांत की बेड़ियां तोड़कर, पंछी ख़ुद को आज़ाद करने लगता है।
भाव हर मन के पास यूं घूमें, मानो रस एकत्र करने वाला भ्रमर है।
कभी तो मुझे भी ये एहसास हो, ज्यों संपूर्ण संसार ही मेरा घर है।
सभ्यता का अस्तित्व तो अनंत है, इस बात का हमें प्रमाण मिला।
प्राणियों के निश्चित श्रेणीक्रम में, मानव को सर्वोत्तम स्थान मिला।
वाणी, विचार, व्यवहार के कारण, मानव संवाद शैली में प्रखर है।
कभी तो मुझे भी ये एहसास हो, ज्यों संपूर्ण संसार ही मेरा घर है।
समस्त इच्छाओं के पीछे मानव, भला तू क्यों निरंतर भाग रहा है?
खुली आंखों से दिवास्वप्न देख, प्राणी तू रात-रातभर जाग रहा है!
हम इसे वक्त का फेर कहें या फिर यह किसी विकृति का असर है।
कभी तो मुझे भी ये एहसास हो, ज्यों संपूर्ण संसार ही मेरा घर है।