मेरा गाँव
मेरा गाँव, जहाँ प्रेम पाथेय,
शब्दों में सुख-सत्कार का श्रेय।
दर्पण सा निर्मल मन दिखावे,
सादगी का अभिनव धन सजावे।
प्रभात में ओस की बूँदें टपकती,
ममता की मूरत, मन में झलकती।
हर गली प्रेम-सरिता बहावे,
अलक्षित गहरी धारा छलकावे।
धूप की सुनहरी धारी जब छाये,
खेतों की सजीवता पुकारे आये।
मिट्टी में गंध का अद्भुत रस,
मन के समस्त त्रास को हर ले बस।
सरलता की हँसी बसी बहार में,
ओस जैसे फूलों की परत में।
महुआ की छाँव, शांति का आसरा,
पनघट की ध्वनि में जीवन का रास रचा।
दादी की कहानी, अमृत का घूँट,
जीवन-सार का राग ज्यों सजीव टूट।
हर शब्द में अनुभव का रंग भर,
दीपक की लौ में ज्यों संग धर।
चौपाल में संध्या की सभा लगे,
सपनों का एक सांझा रेला बहे।
बूढ़े-बच्चे समरसता की गाँठ बाँधे,
साध्य का यह मेला हर्ष बाँटे।
यहाँ पर परायेपन का नहीं शोर,
हर चेहरा अपना, हर मन मोर।
रोटी सादी, पर प्रेम का स्वाद है,
अमृत में डूबा हुआ उन्माद है।
सादगी इसकी शाश्वत पहचान,
मिट्टी में बसी आत्मा का गान।
शहर से दूर, पर हृदय में बसा,
अनुपम उजियारा यहाँ सजीवता जैसा।
रात के तारे जागें हैं यहाँ,
सन्नाटों में कुछ कहें हैं यहाँ।
ताजगी भरी शांति का आलिंगन,
मन को बाँधता है अनहद का संगम।
मेरा गाँव, मेरा स्वाभिमान,
सच्चाई में बसा इसका ज्ञान।
सादगी की इस रूह में है जीवन,
प्रेम में बसी है मेरी साधना का संत।
– श्रीहर्ष—