मेरा अभिसप्त
मेरा अभिसप्त
अभिसप्त नहीं मैं मन्दिरों में भजन गाँऊ
पत्थर की पूजा करूँ व्यर्थ टलियाँ खडंकांऊ
कर्मकांड त्याग अरण्य में कुटिया अपनाऊं
हाथ में चिमटा ले हरि भजन गली घर गाऊँ
राष्ट्र नेता बन जन जन में जातिवाद जहर भँरू
अफसर बन कुर्सी पर बैंठू रिश्वत के पैसों में खेंलू
कर्जे के तले दबे किसानों के बुझे चूल्हों को देखूं
जवानों की अस्थियों, शहीदों की विधवाएं देंखू
अभिसप्त मेरा यही केवल कर्मकाण्ड अपनाऊं
राष्ट्र पर सर्वस्व अर्पित कर न्यौछावर हो जाऊं
राष्टीयता के भाव हर देशवासी के मुख पर देखूं
रिश्वतखोरी आतंकवाद अश्पृश्यता का अंत देखूं
राष्ट्र को सदैव प्रगति पथ पर आग्रह बढता देखूं
सोने की चिड़िया की मिट्टी मे सदा यदा रच बस जाऊँ
सुखविंद्र सिंह मनसीरत