मेघावलियाँ
मेघावलियाँ
आसमान की बनी अंजुली,
मेघों की शुचि धारा अविरल।
शीतलता के मृदुल करों से,
धुलने लगा धरा मुख-मण्डल।
जल अतिशय से तुंग भवन के,
बने पनाले सुंदर झरने।
गली- गली को मेघावलियाँ,
लगी हुई सरिता- सी रचने।
सुभग प्रकृति ने पहन लिये हैं,
ध्वनि-नूपुर नदियों के कल -कल।
शीतलता के मृदुल करों से,
धुलने लगा धरा मुख-मण्डल।
मटमैली क्षिति ने काया पर ,
नूतन विटप हरित-पट पहने।
और पंक की गंध लगाये,
जड़े हुए सुमनों के गहने।
मंथर- मंथर दिवस- तिमिर में,
छेड़ रही पुरवाई चंचल।
शीतलता के मृदुल करों से,
धुलने लगा धरा मुख-मण्डल।
गायें चातक मस्त मयूरा,
तड़ित कौंध उर भीति बढ़ाये।
तृप्त प्रकृति तज तप्त-बोध को,
जीवों के मानस मुस्काये।
बढ़े कृषक बोने अंकुर
खेतों में पा बरखा का संबल।
शीतलता के मृदुल करों से,
धुलने लगा धरा मुख-मण्डल।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’