में कवि हूं कविता गाऊंगा !
में कवि हूं, कविता गाऊंगा,
लफ्जों के बाण चलाऊंगा।
व्यथा दुखियों की तुम्हे,
मैं गाकर रोज़ सुनाऊंगा।
मैं कोई राजकवि नहीं जो,
कसीदे पढ़ खुश हो जाऊंगा।
मैं तो फक्कड़ शायर हूं,
प्रश्न शासन पर भी उठाऊंगा।
में साधक वीना पानी का,
पाठक गजल औ कहानी का।
मेरी कलम सदा सच बोलेगी,
स्याही परत सत्य की खोलेगी।
मेरी कविता आंखो में उतरेगी,
लहू की तरह ये तो बिखरेगी।
शोषित लोगों का ढाल बनेगी,
शासन के समक्ष सवाल बनेगी।
मैं लिखूंगा लोगों की लाचारी,
युवाओं की पीड़ा और बेकारी
गाऊंगा किसान के दुख को,
भ्रष्ट सरकार के भी रुख को।
क्यों स्कूलों में शिक्षा रही नहीं,
क्यों व्यवस्था सरकारी सही नही।
क्यों दवा का इतना अकाल है,
क्यों हर तरफ मचा बवाल है।
क्यों फैली है यहां इतनी लाचारी,
क्यों बेबस रोती जनता बेचारी।
क्यों मृत्यु पर भी मान नहीं मिलता,
उचित यहां सम्मान नहीं मिलता।
में भ्रष्टाचार का सवाल उठाऊंगा,
शासन को भी आंख दिखाऊंगा।
में अदब की महफिल सजाऊंगा,
नई पीढ़ी को अदब सिखाऊंगा।
में कवि हूं, कविता गाऊंगा,
रौशनी हर तरफ फैलाऊंगा।
अंधकार के इस आंगन में,
चिराग ज्ञान का जलाऊंगा।
में कवि हूं, कविता गाऊंगा।