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11 Feb 2024 · 1 min read

मेंहदी

हो कोई भी युग, प्रचलन मेहंदी का नया नया नहीं।
मेंहदी का इतिहास सदा ये कहता, इसका रंग कभी गया नहीं।
मेहंदी का प्रचलन बारहवीं शताब्दी मुग़ल सल्तनत में शुरू हुआ,
तभी से मेंहदी का लगना, मुगल रानियों का गुरूर हुआ।
आगे चल हिंदुस्तानी बहनें भी इस शौक को अपनाई।
शादी के शुभ अवसर पर इसकी भी इक रस्म बनाई।
मेंहदी औषधीय गुणों से भरपूर ,ठंडी तासीर का परिचय देती।
मेंहदी, शुभ, सौभाग्य और दाम्पत्य जोड़ों को परिणय देती।
प्रेम प्रतीक बने ये मेंहदी, मेंहदी भाग्य- प्रबल पर इठलाये।
विवाह से पूर्व लगे जब मेंहदी, सामाजिक स्थान बनाये।
मेहंदी को शादी की शुभयात्रा का शुभारंभ माना जाता ।
रची हुई मेंहदी ही दुल्हन के हाथों चार चाँद लगा जाता।
नवविवाहित जोड़े के बीच गहरे प्यार को यही तो है दर्शाता।
मेहंदी का रंग जितना चढ़ता, सासू का प्यार उतना बढ़ता जाता।
हाँ ज्ञात तुम्हें हो जाये, मेंहदी बालों को भी रंगती है।
दक्षिण एशिया में मेंहदी, सब त्वचा रोग को हरती है

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश

Language: Hindi
1 Like · 156 Views

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