मेंहदी
नेह प्रेम की प्यारी मेंहदी,
है हम नारियों का सौभाग।
रचती रहे यूँ ही हाथों में,
जुग-जुग जीता रहे सुहाग।।
देख सखी ये तेरी-मेरी,
हैं सुन्दर रची हथेलियाँ।
आज सुहाग का पर्व मनाएँ,
सब मिल आओ सहेलियाँ।
नवरात्रि गणगौर को पूजें,
प्रेम की कोयल कूके बाग।
रचती रहे यूँ ही हाथों में,
जुग-जुग जीता रहे सुहाग।।
मेंहदी शुभ सौभाग्य की,
सूचक हर नारी को भाती।
सुन्दर सजी हथेलियों संग,
गोरी साजन को रिझाती।
जिस की हथेली अधिक रंग चढ़े,
उसके होते हैं बड़भाग।
रचती रहे यूँ ही हाथों में,
जुग-जुग जीता रहे सुहाग।।
सावन की सांवली घटाएँ,
जियरा डग-मग डोले।
मेंहदी रचे गोरी के हाथों,
कंगना खन-खन बोले।
तीजों के त्योहार के संग-संग,
पिया प्रेम की बरसे आग।
रचती रहे यूँ ही हाथों में,
जुग-जुग जीता रहे सुहाग।।
सावन में मेंहदी रचवातीं,
प्यारे वीरा जी की बहना।
कर भाई की मंगलकामना,
वह तो है पीहर का गहना।
रक्षा बंधन की पावन डोर,
यह कच्चे से सूत का ताग।
रचती रहे यूँ ही हाथों में,
जुग-जुग जीता रहे सुहाग।।
शगुन की मेंहदी हम हैं चढ़ाते,
नवरात्रि दुर्गा काली को।
माँ लक्ष्मी को मेंहदी रचाएं,
हम हर इक दीवाली को।
करवा चौथ, हरितालिका की मेंहदी,
सजाते हैं हम जब रतजाग।
रचती रहे यूँ ही हाथों में,
जुग-जुग जीता रहे सुहाग।।
जन्म से ले परिणय व अंत तक,
मेंहदी अपना साथ निभाती।
भारत के हर इक मजहब में,
यह अपना अस्तित्व दिखाती।
पल-पल हर इक विधि विधान में,
छेड़े मेंहदी अपना राग।
रचती रहे यूँ ही हाथों में,
जुग-जुग जीता रहे सुहाग।।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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