मेंहदी : मुक्तक
मेंहदी
// दिनेश एल० “जैहिंद”
मैं कभी जंगलों में गुमसुम सोई थी ।
निज अनुपयोगिता पे छुपछुप रोई थी ।।
शुक्रगुजार हूँ मैं उन ऋषि-मुनियों की,,
उनकी नज़रों में जो कभी मैं आई थी ।।
मेरी शीतलता व कोमलता अपनाओ ।
मेरी लालिमा और मोहकता अपनाओ ।।
मेरे इन गुनों को अपनाकर जगत में,,
अपने प्रियवर पिया की प्यारी बन जाओ ।।
मैं मेहँदी बड़ी असरदार हूँ ।
रक्त वर्णा बहुत चटकदार हूँ ।।
मेरी पूछ बड़ी स्त्रियों में,,
मैं जो प्रिय उनका सिंगार हूँ ।।
=== मौलिक ====
दिनेश एल० “जैहिंद”
15. 06. 2017