मेंढक और ऊँट
दिन और रात
में यही फर्क है
मेंढक की सवारी है
ऊँट की लाचारी है
आप भी कहोगे
क्या मज़ाक है…?
कोई मेंढक की
सवारी करता है क्या?
फिर क्या उपमा दूँ?
लोमड़ी, शेर, चीता
नहीं, नहीं
यह हो नहीं सकता
कभी देखा है खुद को
रातभर टर्र टर्र करते हो
सुबह होते ही
ऊँट की तरह
जुगाली करके
निकल पड़ते हो।
तुम भी मौसमी मेढक हो
मौसम देखकर
टर्र टर्र करते हो
यही तुम्हें अच्छी लगती है
कैसी भी हो सियासत
भली लगती है।
ऊंट तो खामोश है
बोझ कहाँ देखता है।
तुम भी ज़रा अपनी
पीठ को देख लो
हो सकता है तुम कहो
मैं ऊँट हूँ.. मैं ऊँट हूँ।।
सूर्यकांत