“मृदु वचन तू बोल रे मनवा”
मृदु वचन तू बोल रे मनवा
बोल रे मनवा बोल,कटुक वचन मत बोल।
यह तन है माटी का मटका,
कर्म जल से परिपूरित मटका ।
जिसमें बादल की छाया दिखती
तब तक सारी दुनियां दिखती।
जिस दिन कर्म जल सूख गया तो,
बादल की छाया नहीं दिखती।
पानी से खाली है मटका,
आत्मा अब दे गई झटका।
पड़ा है खाली तन मिट्टी का ढेला
खत्म हुआ अब खेल ये तेरा।
लकड़ी की अब चिता बनाई
खाली पिंजड़े को रख डाला
चिता में आग लगाई।
जिसमें जल गई दुनिया सारी ।।