मृत्यु
मृत्युशया पर बैठ कर
एक मोती मिला
ज्योति मे
अनगिनत आशाएं लौट गयी
क्षितिज पर कुम्हलाती
जीवन नैया थम गयी
अंधकार कोंधता
जमीन से आसमां में
उतर गया
मृत्यु पैर पसारे
दंभ दिखलाती आई
बिखर गया सब
छोड़ चले वो
असंख्य स्मृतियां संग
विक्षिप्त मन थम गया
रह गया सूनापन
ये नीलगगन..
मनोज शर्मा