मृत्यु लोक के हम हैं प्राणी!
देखा नही पर,सुना जरूर है,
और कई लोक हैं यहाँ पर!
कौन वहाँ पर रहते हैं,
यह भी हमने सुना यहाँ पर!
पर हम तो हैं मृत्यु लोक के प्राणी,
जो आए हैं, यहाँ अपने कर्मो के आधार पर!
हमारे कर्मों का लेखा जोखा,
रखा जाता है यहाँ पर!
और तय होती है,जिंदगी हमेशा ,
अपने किए कर्मों के आधार पर!
कहने को तो यह भी कहते हैं,
जन्म-मरण है,ईश्वर के हाथ पर!
[पुनरपि-जननम,पुनरपि मरण,
पुनरपि जननी -जठरे सैनम !]
यह इस मृत्यु लोक का है विधान,
बार,-बार मरकर भी जन्म लेते इंसान!
विद्वानों ने तो यह भी बतलाया,
चौरासी लाख योनियों को भोग कर,
तब हमें आदमी बनाया गया!
पर सोच कर तो देखो,
क्या हम सचमुच में आदमी बन पाए हैं !
या फिर सिर्फ,
आदमी की काया में , जानवर बन कर आए हैं!
जहाँ-आदमी -आदमी का दुश्मन बन जाए,
वहाँ,इसके अतिरिक्त और क्या कहा जाए !
भले-बुरे का फर्क नहीं कर पाते हम,
अपने पक्ष में, कुछ भी कर जाते हम !
और फिर,जब मर जाते हैं,
तो,हमारे कर्म हमारे,जन्मों का आधार बन जाते !
जन्म किस योनि में मिलेगा,
यही तो हमारा कर्म तय. करेगा !
सांप-बीच्छू,या नेवला बनेंगे,
गाय-भैंस,या फिर बैल बनेंगे !
घोड़े-खच्चर,या गधा बनेंगे,
जीवन भर बोझा ढोयेंगें !
और भी ना जाने क्या – क्या हम बनेंगे ,
कीट-पतंगे,या मच्छर बनेंगे,
या घातक कोई विषाणु बनेंगे ! (कोरोना जैसे)
और,मानव बन कर,जो करते आए थे,
वही काम तब हम ऐसे जीव बन कर करेंगे! यह करना ही हमारा कार्य बनेगा,
और,योनि-दर योनि,यू ही भटकना पड़ेगा !
तो फिर क्यों नहीं हम कुछ अच्छा कर जाते,
अच्छे का अच्छा ही फल पाते !
मनुष्य बन कर ,
दया का भाव बना रहे,और पुरुषार्थ करें,
अपने निजी स्वार्थ का ना ध्यान धरें !
और जब मुक्ति मिले इस जीवन से,
तो विधाता को यह सोचना ना पड़े,
अब इसे.कहां जन्म लेना है!
जन्म मिले तो फिर आदमी के रूप में ही मिले !
यही मृत्यु लोक की है परंपरा,
गर इंसान बनकर आए हैं,तो सोचना जरा!!
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