मूल्य
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/16f4fefc64d3696faac81339a298b215_9e077a57a088437b0f4a6569a13dfce5_600.jpg)
बहुत पुरानी बात है। एक बार राजा का दरबार लगा हुआ था। उसी समय एक व्यक्ति का आगमन हुआ। राजा ने पूछा कि आप कौन हैं?
आगंतुक ने कहा कि मैं एक प्रवासी हूँ, लेकिन यह आप पर है कि मुझे क्या मानेंगे- मित्र या शत्रु?
राजा ने पूछा कि मेरे राज्य का हित किसमें है?
आगन्तुक ने कहा कि दोनों में है।
राजा ने फिर पूछा- ‘वो कैसे?’
आगन्तुक बोला- ‘यदि मित्र मानेंगे तो सच्चा परामर्श दूंगा। कठिन परिस्थितियों में भी साथ निभाउंगा। सच्ची मित्रता की पहचान भी यही है। अगर मुझे शत्रु मानेंगे तो आप सावधान रहेंगे, सतर्कता बढ़ेगी, आप निरंकुश नहीं होंगे और जन कल्याणकारी कार्यों द्वारा प्रजा को सर्वाधिक खुश रखेंगे।’
यह सुनकर राजा को समझ आ गया कि मित्र के साथ शत्रु का भी मूल्य होता है। अर्थात दुनिया में मूल्य विहीन कुछ भी नहीं है।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
भारत भूषण सम्मान प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।