मूल्यवान पल का महत्व
जुगनुओं का भी आलोक पर्याप्त है,
संकल्प यदि मुक्ति पाना तिमिर से,
निस्तेज मालिन्य महीतल पर क्यों,
चैतन्य निश्चित चारु मिहिर से।
मनस से मनुज क्यों तनावों ग्रस्त,
माया से किंचित अभावों से त्रस्त,
सुधाकर के मुख पर शान्ति अपार,
प्रतीकों में शिक्षा करें सदव्यवहार।
लटके हैं उल्टे गगन पर सितारे,
आलोक देते धवल चारु सारे,
माना ये जीवन विषमता परिपूर्ण,
मनुजता के हित सुरक्षित हों सारे।
मूल्य पल का सदा महत्वपूर्ण अति,
अनिवार्य मानव की स्थिर मति,
स्थिति अन्यथा की भयावह अतीव,
पलक के झपकते मिले अवनति।
–मौलिक एवम स्वरचित–
अरुण कुमार कुलश्रेष्ठ
लखनऊ (उ.प्र)