मूर्दों की बस्ती
न तो खुलकर जी सकती है
न ही खुलकर मर सकती है
अरे, यह मूर्दों की बस्ती है
बस हाय-हाय कर सकती है…
(१)
क्या लेखक-क्या पत्रकार
क्या खिलाड़ी-क्या कलाकार
जब बड़े-बड़े सूरमा चुप हुए
आखिर अपनी क्या हस्ती है…
(२)
नीरो के इस राज में
ज़ात-धरम की आग में
देख जला जा रहा रोम उधर
इधर छाई इस पर मस्ती है…
(३)
देश के बिगड़ते हाल पर
वक़्त के ज़रूरी सवाल पर
आज विपक्ष के नेताओं में
कितनी शर्मनाक पस्ती है…
(४)
तालीम से लेकर सेहत तक
कारोबार से लेकर इज़्ज़त तक
हर चीज़ यहां महंगी लेकिन
जान आदमी की सस्ती है…
(५)
मदारी का बीन सुनकर
नाचती रहती है पूंछ पर
दूध पिलाने वाले को ही
यह नागिन बनके डंसती है…
(६)
बुद्धिजीवियों को गाली मिले
और धर्मगुरु को ताली मिले
तभी तो इन जाहिलों की
हालत इतनी खस्ती है…
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Shekhar Chandra Mitra
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