मूक संवेदना…
हरदम तेरे साथ रहूँगी
बनके सुरभि शीतल पौन।
कहने को हम दूर हैं साथी
पर बसते अंत:स्थल मौन!
हुए विलग पर विलग नहीं हम
जैसे बही – खातों में लोन!
किश्तों-पे-किश्तें भरते रहना,
मत बनना ख़ुद में तुम डोन!(DON)
हरदम तेरे साथ रहूँगी
बनके सुरभि शीतल पौन।
कर्त्तव्य पथ पर फर्ज़ पुकारें
रिश्तों की मत बदलो टोन!
हरपल तेरे साथ हूँ साथी,
समझो मत तुम मुझको गोन!(gone)
ज्ञानी – ध्यानी होकर प्यारे
करता ऐसी हरकत है कौन?
एकलव्य समझों न ख़ुद को
माना मैं लगती गुरु द्रौण!
हरदम तेरे साथ रहूँगी
बनके सुरभि शीतल पौन।
नीलम शर्मा ✍️