मुहब्बत
मुहब्बत
मुहब्बत ही जीत में जंग है
मुहब्बत ही सबके संग है
मुहब्बत से हो न सकूँ फना
मुहब्बत बसी हर अंग है
मुहब्बत में बेहाल हो गया
मुहब्बत में बेकार हो गया
चढ़ा है जो इश्क का भूत
मुहब्बत में बेगार हो गया
मुहब्बत ही उठता ज्वार है
मुहब्बत ही दिल का बयार है
न मिल पाये हर किसी को तो
नसीबों की ही विकट मार है
मुहब्बत का बाजार सजा है
खयावों का आगार लगा है
मिली है जिसको मुस्कराया
न मिलती वो लाचार पड़ा है
मुहब्बत की तस्वीर देखी है
सँवारी हुई तकदीर देखी है
चली आये जब सामने मेरे
सजाई हुई तस्दीक देखी है
तस्दीक –सच्चाई , सत्यता