मुहब्बत में
क्या शिकायत करें मुहब्बत में
खामुशी जब है अपनी आदत में
साथ होने का तो दिखावा है
साथ होते नहीं हकीकत में
चाल कोई चले सभी जायज
इक मुहब्बत में इक सियासत में
चाह कर भी जो मिल नहीं पाये
रह गई क्या कसर इबादत में
फ़र्क रहता नहीं नसीहत का
एक गीबत में एक नफ़रत में
उनका नज़रें चुराना साजिश है
मिल गया है कोई रकाबत में
रुख बदल जाता है यहाँ सब का
इक नदामत में इक अदालत में
क्यों मयस्सर नहीं हुआ ‘सागर’
कट गई ज़िंदगी किताबत में