मुहब्बत के वह ख़त
इश्क़ की जिसमें पहली हवाएं लिखी थी
प्रेम में सारी अपनी भावनाएं लिखी थी
शब्द जिसमें प्रेम के, आज भी देते दस्तक
आज फिर पढ़ रहा,मुहब्बत के वह खत।
जिसको लिखा था रातभर हमने जग के
बात थी हर लिखी ,जो आये थे लब पे
जिसमें आज भी है, मेरे अश्क़ों के दस्खत
आज फिर पढ़ रहा,मुहब्बत के वह खत
ख्वाब को हर लिखा, राज को हर लिखा
हर सुबहा लिखा,सांझ को हर लिखा
मगर ना हुई कम,जिसको लिखने की चाहत
आज फिर पढ़ रहा,मुहब्बत के वह खत।
देवेश कुमार पाण्डेय
कुशीनगर ,उत्तर प्रदेश