मुहब्बत, इक एहसास
मुहब्बत इक एहसास, के इलावा क्या है,
समझो तो सब कुछ, वर्ना क्या है,
ज़ज्बा है किसी की चाहत का, चाहने का,
उसे हासिल करने के सिवा इरादा क्या है,
क़रीब आकर ही आदते और वजाहतें सामने आती हैं
फिर पसंद-नापसंद, ये ख्वाब टूटने का सिलसिला क्या है,
परेशान से ढूंढते हैं जिसका तसुव्वर किया था कभी.
खवाबों की उस तस्वीर में, ये धुंधला सा साया क्या है,
यह इंसान अजनबी है या वो थी तस्वीर किसी और की,
इसी कशमकश में हैरान, कि यह माज़रा क्या है,
मुहब्बत की आरजू, अधूरी प्यास बन के रह गयी,
मुहब्बत के एहसास का, मुक़म्मल अफसाना क्या है,
हो शिद्दत से मुहब्बत, तो ये बहाना क्या है,
मुहब्बत अम्ल है करने का, लौटाना क्या है,
-विकास शर्मा ‘दक्ष’-