मुस्ताकिल
डा . अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
उपर वाला ही होता है मुस्ताकिल सबका
हर घडी
इन्सान तो बस इक बहाना होता है अगरचे
दया हो उसकी
सोच में वजन और वजन में इखलाक चाहिए
हर घडी
आदमी को आदमी से बस और क्या चाहिए
हर घडी
मैं नही कह्ता ये रसूले पाक कह्ता है
हर घडी
बस अपनी नियत को साफ होना चाहिए
हर घडी
मुश्किलें तो आती रहेंगी बिना इनके मज़ा क्या है
हर घडी
जज्बाये खून में हो रवानी अगरचे हम पर हो
दया उसकी
तेरे चेहरे से चिन्ताओं का साया कब मिटेगा
उपर वाले का भरोसा अब कब् तक बनेगा
तू समझता है ये दुनिया तेरे इशारे पर चलेगी
बादशाहों ने यहाँ वक्त पर हैं सर झुकाये
एक पल में बद्लती है तस्वीर फानी जिन्दगानी
हर घडी
और तु तू समझता है ये दुनिया तेरे इशारे पर चलेगी
उपर वाला ही होता है मुस्ताकिल सबका
हर घडी
इन्सान तो बस इक बहाना होता है अगरचे
दया हो उसकी
सोच में वजन और वजन में इखलाक चाहिए
हर घडी
आदमी को आदमी से बस और क्या चाहिए
हर घडी