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11 Apr 2021 · 1 min read

मुस्कान

चंचल छंद

चलें साथ में दूर।
श्रम से होकर चूर।
एकला चलता तेज है।
साथ नहीं भरपूर।

चंचल सुर की तान
मोहक है मुस्कान
हरती मन का चैन है।
नैसर्गिक पहचान।

डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
वरिष्ठ परामर्श दाता,प्रभारी रक्त कोष
जिला चिकित्सालय सीतापुर
मौलिक रचना

Language: Hindi
408 Views
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