मुसाफिर
——मुसाफिर——-
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मैं हूँ राह का मुसाफिर
हुआ हूँ तुमसे मुतासिर
ना ही दर,नहीं ठिकाना
दीवाना हूँ मैं मुसाफिर
गुमशुदगी की दुनिया मे
गुमशुदा हो गया हूँ मैं
छोड़ा अपनों ने अधर में
बन गया हूँ मैं मुसाफिर
अपनों ने जहाँ था छोड़ा
गैरों ने वहाँ दामन थामा
अपने-पराये के बीच में
मैं फंस गया हूँ मुसाफिर
होशोहवास में नहीं हूँ मैं
दुनिया को भूल गया मैं
होश में कब आऊंगा मैं
बेहोश हो गया मुसाफिर
यह जग मुसाफिरखाना
लोगों का आना- जाना
यहाँ चलता नहीं बहाना
सुखविंद्र भी है मुसाफिर
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)