मुसाफिर अंजाना
जीवन में हंसी क्षण न रूके तो अच्छा हो,
मनभावन सी यादें गर महके तो अच्छा होI
मुसाफिर अंजाना सा अपना सा मिले कोई ,
मिल जाये समय पर ठिकाना तो अच्छा हो I
बदली सी लगती दिशाए किस और गये तुम ,
तूफानो में गिर कर संभल जाएँ तो अच्छा होI
मन की पीड़ा में लहराता उम्मीदों एक सेलाब
पथ में कंटकों से सामना न हो तो अच्छा हो|
_______________अभिषेक शर्मा