“मुसाफ़िर”
“मुसाफ़िर”
यहाँ कौन नहीं मुसाफ़िर है,
माटी में मिलना आखिर है।
अभिमान करें तो किस बात पे,
दुनिया फकत एक ताबीर है।
सूरत भले ही पीओपी से बने,
दिल माटी का ही पाकिर है।
“मुसाफ़िर”
यहाँ कौन नहीं मुसाफ़िर है,
माटी में मिलना आखिर है।
अभिमान करें तो किस बात पे,
दुनिया फकत एक ताबीर है।
सूरत भले ही पीओपी से बने,
दिल माटी का ही पाकिर है।