” मुसल “
अब तो घरों की तरह
रिश्ते भी रेनीवेट होते हैं
जहाँ ज्यादा स्वार्थ होता है
वहाँ ये री – कंस्ट्रक्ट होते हैं ,
फर्क नही है ज़रा भी अब
रिश्ते और ईट – गारे में
मन ऊँबने पर तुरंत चले जाते हैं
ठेकेदार* के चौबारे में ,
एक ठेकेदार^ घर बनाता है
उसको नये ढ़ंग से बनाता है
दूसरा ठेकेदार रिश्तों को संभाल कर
फिर से एक मौका देने को कहता है ,
पहले ठेकेदार के बनाये सुंदर घर में
जब रिश्ते बेहद बदसूरत हो जाते हैं
उन रिश्तों को फिर से संवारने
दूसरे ठेकेदार आ जाते हैं ,
आजकल हर एक रिश्ता
सुविधा के हिसाब से होता है
ये कुछ जँच नही रहा
चलो दूसरा रिश्ता बनाते हैं ,
पहले रिश्ते हों या घर
जैसा होता था
उसी में निभाना
सबका फर्ज होता था ,
घर तक तो ठीक है
ठेकेदार से बनवाना
रिश्तों मेंं ठेकेदार को तो
जबरदस्ती है बुलाना ,
जैसे हम अपने घर को
अपनी मर्जी से सजाते हैं
फिर क्यों अपने निजी रिश्ते में
मुसल की तरह किसी और को घुसाते हैं ?
ठेकेदार^ – Constructor
ठेकेदार* – Counselor
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 16/11/2020 )