मुसलसल ईमान-
फिर इक खौफ का मँज़र हर ज़हन मे छा गया!
वादिए कश्मीर ज़न्नत नही ,दोज़ख मे आ गया!!
आफिस,स्कूल,घर कही भी तो अब महफूज़ नही,
दरिदो को बहत्तर हूर चूमने का चस्का आ गया!!
इस्लाम को क्यू बदनाम करने पै आमादा हो तुम?
मुसलसल ईमान- पाठ ज़हन से क्यू भुला गया?
न इतनी नफरत फैलाओ कि लोग कतराने लगै ,
कहै जहा मे हिकारत का सबब इस्लाम पा गया!!