*मुलाकात*
इक मुलाकात जो हुई सबसे
यादें संजो गई पल भर में
वक़्त कब गूज़र गया
या यूंही हाथों से फिसल गया
कुछ और पल मिलते
कुछ और बातें करते
कुछ तुम कहते, और
कुछ हम सुनते, फिर
कुछ नई यादें बुनते ।
लम्हा था, थम न सका
बस यूहीं बह गया
देखते, सुनते, हंसते
कुछ यादें, फिर दे गया ।
वो लम्हा,
कुछ अपना सा
कुछ पराया
जाने कब लौट आएगा
फिर इक मुलाकात संग लाएगा ॥