मुलाकात (ग़ज़ल)
आंखों में मुलाकात की तिश्नगी हमें अच्छी लगी
जो तेरे दिल में है दिल्लगी हमें अच्छी लगी
झुकी झुकी ये पलके और हयापन चेहरे पे
मेरे हमदम तेरी सादगी हमें अच्छी लगी
तितली सी इतराते फिरना मेरी गली में
ये बंजारापन दीवानगी हमें अच्छी लगी
बड़े दिनों बाद आज जाने क्यों मेरे रब्बा
उनके कूचे में आवारगी हमें अच्छी लगी
तुम किसी रहगुजर पे किसी शाम मिलने की
जो रब से करते हो बंदगी हमें अच्छी लगी
दुष्यंत दूर है हमतुम इक दूजे से मगर
बरकरार है प्यार की खानगी हमें अच्छी लगी
✍️दुष्यंत कुमार पटेल