मुट्ठी में बन्द रेत की तरह
मुट्ठी में बन्द रेत की तरह
वक्त तो फिसल गया,
बस देखते ही देखते
सब कुछ बदल गया,
जो वक्त गुजर गया
वो लौट कर न आएगा,
जीवन था चार दिन का
वो भी ढल गया।
मुट्ठी में बन्द रेत की तरह
वक्त तो फिसल गया,
बस देखते ही देखते
सब कुछ बदल गया,
जो वक्त गुजर गया
वो लौट कर न आएगा,
जीवन था चार दिन का
वो भी ढल गया।