मुझ पर तुम्हारे इश्क का साया नहीं होता।
ग़ज़ल
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मुझ पर तुम्हारे इश्क का साया नहीं होता।
मैं भी तुम्हारी छांव में आया नहीं होता।1
बेघर हुए जो लोग वो इंसान नहीं क्या,
गर सोचते तो घर ये गिराया नहीं होता।2
लेते नहीं उधार अगर साहूकार से,
ताजिंदगी वो क़र्ज़ चुकाया नहीं होता।3
जाता न गर विदेश तो रहता वो यहीं पे,
बेटा हमारा है वो पराया नहीं होता।4
होते न कैद हम भी तेरे इश्क ए कफ़स में,
चोरी से मेरा दिल जो चुराया नहीं होता।
तेरी वफ़ा में गर चे हकीकत नहीं होती,
प्रेमी ने तुझ पे प्यार लुटाया नहीं होता।6
………..✍️ सत्य कुमार प्रेमी