मुझ जैसा रावण बनना भी संभव कहां ?
प्रभु श्री राम बनना असंभव है
मुझ जैसा रावण बनना भी संभव कहां ?
कुछ अवगुण थे मेरे अंदर
सौ गुण थे भर भर कर ,
वो गुण अपने अंदर लाओ
एक पल में मुझ जैसा रावण बन जाओ ,
सबक लो सब मुझसे हर पल
नहीं आता कभी पलटकर कल ,
कहता हूं कुछ तो सीख लो मुझसे
मेरे गुण हुए तुच्छ सबसे ,
सौ गुणों पर एक अवगुण भारी है
ये बात सीखने की अब सबकी बारी है ,
बिना एक भी अवगुण के अयोध्यापति
मर्यादापुरुषोत्तम प्रभु श्री राम कहलाये ,
अहंकार/व्यभिचार का अवगुण लेकर के मैं दशानन
लंकापति से सिर्फ रावण कहलाया ,
कुछ तो कर्म अच्छे अवश्य होंगे मेरे
मेरी मुक्ति के लिए प्रभु को आना पड़ा राम बन के ,
ये सच है कि राम बनना असंभव है
पर मुझ जैसा रावण बनना भी संभव कहां ?
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा )