मुझ जैसा कोई देवव्रत होता।
मैं यदि देवव्रत होता,कभी ऐसी शपथ नहीं लेता।
और अगर मजबूर कोई करता, तो अपने तर्कों को मैं रखता।
यदि तब भी वह मानें नहीं होते, तो मैं शपथ भी शर्तों पर लेता।
तो पिता शांतनु ने, सत्यवती से विवाह नहीं किया होता,
और ऐसा कोई विवाद ही नहीं होता।
फिर भी यदि हो ही जाती शादी,
और मुझसे छीन ली जाती मेरी आजादी।
तब भी आधे राज्य का हकदार तो होता,
हस्तिनापुर बंट जाता आधा।
और यदि ऐसा भी नहीं होता,
तब भी मैं कोई जुगाड कर लेता।
और यदि यह भी नहीं कर पाता,
तो माता सत्यवती को अपने पक्ष में कर जाता।
माना कि माता सत्यवती मुझसे रुठ भी जाती,
तो अनुज भाईयों से प्यार बढ़ाता,
वह राजा बन जाते, तो मैं सेना पति तो बनाया ही जाता।
और जब भाईयों के पुत्र हो जाते,
तो वह मुझे ज्येष्ठ तात कह कर बुलाते।
लेकिन यदि पुत्र नहीं हो पाते,
तो फिर मुझको शादी के लिए कहा जाता।
और यदि मेरी शादी हो जाती,
तो फिर ऐसी कोई बाधा नहीं आती।
ना माता सत्यवती को वेद व्यास को बुलाना पड़ता,
ना ही धृतराष्ट्र व पांडू का पैदा होना पड़ता।
ना भरत वंश को यह झंझट झेलना पड़ता।
और यदि यह सब हो ही जाता,
तब मैं अंधे धृतराष्ट्र को ही राजा बनवाता,
धृतराष्ट्र की आड़ में, मैं ही सारा राज पाट चलाता।
तब युधिष्ठिर को युवराज बनवाने का दबाव नहीं होता,
और यदि धृतराष्ट्र ही पांडू के स्थान पर मर गया होता।
तो फिर दुर्योधन को राज़ पाठ से विमुख कर दिया होता,। यदि यह सब भी नहीं हुआ होता,
तो गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से ना किया गया जाता,
और ना ही शकुनि जैसा कोई कुटिल नीति के व्यक्ति से,
संबंध नहीं जुड़ पाता ।
और ना ही वह ऐसा कोई विष घोलता,
ना ही कोई विवाद कौरव पांडव में पनपता।
और यदि यह सब हो ही गया था तो,
तब मैं ही हर बार हस्तिनापुर की आड़ में,
धृतराष्ट्र एवं दुर्योधन के पक्ष में खड़ा नहीं रहता,
अच्छे बुरे का विचार करते हुए,
राजा से न्याय को कहा होता।
और यदि वह ऐसा नहीं कर पाता,
तो उसको राजा के पद से पदच्युत किया होता।
लेकिन वह महामानव ऐसा नहीं कर पाया,
और हस्तिनापुर को धृतराष्ट्र समझ बैठा,
धृतराष्ट्र में हस्तिनापुर ही देखा।
यही अपराध देवव्रत से हुआ है
हर अवसर पर वह चूकता रहा है।
और अंत में वह सब भोगने पड़ गये,
जिसके लिए वह सीधे दोषी नहीं थे।
इसी लिए मैंने यह कहा है,
यदि मैं या मुझ सा कोई देवव्रत होता,
तो क्या आज के परिवेश वह यह सब कर सकता था।
नहीं,कभी नहीं, कोई ऐसा नहीं कर सकता है,
और शायद मैं भी यह नहीं कर सकता था ।
यदि मैं देवव्रत होता, तो देवव्रत ही बन कर रहता,
भीष्म पितामह कभी नहीं, और कतही नहीं बन बैठता।।