मुझे हिंदी के लिंगों से बचाइए
अगर एक विचार माने तो लिंग अच्छी चीज नहीं है या तो यह जनसंख्या बढ़ाती है या मुआ ‘डाउन फ्लोर’ में रहकर भी ‘जबरिया संबंध’ के बारे में ही सोचता है ! जो कि खतरनाक स्थिति है। हिंदी भाषा को ही लीजिए, कामता प्रसाद गुरु से अबतक के सभी वरेण्य व्याकरणाचार्यों ने हिंदी के ‘लिंग’ निर्धारण के लिए जो नियम तय किये हैं, वह एक या दो नहीं, कई हैं, जिसे किसी भी दृष्टिकोण से रटा नहीं जा सकता ! सबसे बड़ी दिक्कत तब पेश आती है, जब सभी नियमों के साथ ‘अपवाद’ आकर माथा-पच्ची करने लग जाते हैं ! इसके बावजूद हिंदी में शब्दों के लिंग निर्धारण का कोई एक या सटीक नियम नहीं है।
एक नियम कहता है कि नारीसुलभ चेष्टाएँ स्त्रीलिंग होंगी, तो पुरुषोचित गुण या चेष्टाएँ पुल्लिंग। जैसे:- अंगड़ाई, हंसी, मुस्कान, लज्जा इत्यादि स्त्रीलिंग शब्द हैं, जबकि साहस, क्रोध, ठहाका इत्यादि पुल्लिंग हैं, लेकिन फिर ‘क्रूरता’, ‘निर्दयता’ शब्द स्त्रीलिंग क्यों हैं ? इतना ही नहीं, ‘पुलिस’ और ‘मूंछ’ भी स्त्रीलिंग हैं ! अतएव, बेहतर यही है कि सतर्क रहकर अभ्यास किया जाय ! एक आम फ़हम नियमित अभ्यास नहीं कर पाएंगे, फिर तो केंद्रीय हिंदी संस्थान, जेएनयू और साहित्य अकादेमी को इसपर निश्चितश: चिंतन और विमर्श करने ही चाहिए, जिसके लिए वे समय और रुपये बर्बाद करते आये हैं !