मुझे फूल नहीं, कांटा बनना है
सच ही तो कहतें हैं,
बाग में सबसे पहले वही फूल टूटता है,
जो सबसे खूबसूरत हो ।
कुछ फूल होते हैं ऐसे,
जिनके साथ काटें होते हैं
वो काटें ही तो उस फूल के
पहरेदार होते हैं ।
वो रक्षा करतें हैं उसके जीवन की,
उसकी खुशबू की, क्योंकि
वो काटें ही तो उस फूल के
पहरेदार होते हैं ।
कुछ ऐसी ही तो हूँ मैं,
मैं एक औरत
सच मे उस फूल की तरह ही
तो होती है औरत
यूँ तो हर कोई चाहता है
एक खूबसूरत फूल बनना,
पर मुझे फूल नहीं
कांटा बनना है ।
एक फूल जिस किसी के
हाथों में जाता है,
अपनी खुशबू उसके
हाथों में छोड़ देता है।
पर उस इंसान को
इतने में सब्र कहाँ ?
खेलकर उस फूल से
उसकी खुशबू से
फिर उसकी पंखुड़ियों
को तोड़ देता है ।
मेरी खुशबू मेरी इज़्ज़त है
ना मैं इससे किसी को
खेलने दूँगी, ना बिखेरने दूँगी
अपनी हिफाजत का कदम
मुझे खुद रखना है
इसीलिए मुझे फूल नहीं
कांटा बनना है ।
जीवन देने वाली औरत
किसी को दर्द देकर खुश नहीं ।
पर औरत को खुश देखकर
क्यों ये दुनिया खुश नहीं ।
अपनी रक्षा के लिए मुझे
फूल नहीं कांटा बनना है ।
तुम्हें ये सब आसान लग रहा है,
पर ये इतना आसान नहीं है ।
मैं फूल बनकर पली-बढ़ी हूँ,
अब कांटा बनना आसान नहीं है ।
यह मेरा कोई सपना नहीं,
कोई शौक नहीं ।
ये मेरी जरूरत बना दी गई है ।
क्योंकि औरत आज एक
खेलने की चीज बना दी गई है ।
पर मैं अपने आपसे किसी को
खेलने नहीं दूँगी ।
अपनी हिफाजत का कदम
मुझे खुद रखना है
इसीलिए मुझे फूल नहीं
कांटा बनना है ।
मन मे गलत सोच लिए,
आंखों में गंदगी लिए,
जो औरत के तन को घूरते हैं ।
वहम दूर करना होगा उनका,
जो औरत को कमजोर समझतें हैं ।
पानी की तरह अपने आपको,
किसी भी रंग में ढाल लेती है औरत ।
कभी लोहे की तरह,
खुद को तपा लेती है औरत ।
बनकर एक माँ,
जिंदगी को जन्म देती है औरत ।
कभी बनकर फूल,
जीवन को महका देती है औरत ।
पर आज क्यों मुझे,
फूल से कांटा बनने पर मजबूर किया है ।
अब तू ही बता कुमार
मैंने ऐसा क्या कसूर किया है ।
मुझे उस बाग के फूल की तरह
टूटना नहीं है ।
अपनी खुशबू के साथ,
अपना जीवन जीना है ।
अपनी हिफाजत का कदम
मुझे खुद रखना है
इसीलिए मुझे फूल नहीं
कांटा बनना है ।