मुझे नहीं पसंद किसी की जीहुजूरी
मुझे नहीं पसंद किसी की जीहुजूरी
जो मेरे बात में अपनी बात को मिला दे
मैं दिन को रात कहूँ वो सूरज को चांद बता दे
मैं कोयल के गीत को कर्कश कहूँ
तो वो कौवों की आवाज मीठी बता दे
मैं झींगुरों की आवाज को शोर कहूँ
वो ढूंढ ढूंढ कर उनको भगा दे
वो “वो” रहे
मैं “मैं” रहूं
जब वो और मैं मिले तो एक हो जाए
पर दोनो का वजूद बना रहे।।
एक में दूसरा समाकर
एक दूसरे का अस्तित्व बचा ले।।
Ruby