मुझे धरा पर न आने देना
मुझे धरा पर न आने देना
सुन लो करुणा मेरी माता,
मुझे धरा पर न आने देना,
जन्म से पहले कोख में ही,
मौत की नींद सुला देना
मौत की नींद…….
(सुन लो करुणा मेरी माता, मुझे धरा पर न आने देना)
जिनके गोद में खेलने गई मैं,
उसने ही दफना दिया,
अंदर की हवस को जगाकर,
वात्सलता को आग लगा दिया
वात्सलता को आग……..
(सुन लो करुणा मेरी माता मुझे धरा पर न आने देना)
डर लगता है जाऊँ पास मैं किसके,
रक्षक ही भक्षक बन जाते हैं,
जिनके गोद को महफूज मैं समझूँ,
वही हैवानियत दिखा जाते हैं
वही हैवानियत दिखा……..
(सुन लो करुणा मेरी माता, मुझे धरा पर न आने देना)
छोटे हैं कपड़े मेरे ये सभी कह जाते हैं ,
उम्र भी है छोटी मेरी ये क्यों नहीं देख पाते हैं
द्रोपदी सी है हालत मेरी,
अब कृष्ण भी कहाँ आते हैं
अब कृष्ण भी कहाँ…….
(सुन लो करुणा मेरी माता ,मुझे धरा पर न आने देना)
हरण करके भी जिसने सीता को न स्पर्श किया,
कहकर उसे राक्षस हर वर्ष ये जलाते हैं,
ख़ुद के अंदर के दानव को छुपाकर,
उस रावण को आग लगाते हैं
उस रावण को आग…….
(सुन लो करुणा मेरी माता, मुझे धरा पर न आने देना)
कहती है ये दुनिया सारी, अम्बे काली की रूप है नारी,
फिर क्यों सिर्फ मंदिरों में ही पूजी जाती है नारी,
क्या घर घर नहीं बस्ती है नारी,
या ये नहीं है मूर्तियों जीतनी प्यारी
या ये नहीं है मूर्तियों….
(सुन लो करुणा मेरी माता, मुझे धरा पर न आने देना)
मंदिरों में बैठी वह मूर्तियाँ भी ,
अब मुझे चिढ़ाती है माँ,
मैं पत्थर होकर भी पूजी जाती,
हे नारी तेरी है ये दुर्दशा, ये कह मुझे सताती है माँ
ये कह मुझे………
(सुन लो करुणा मेरी माता, मुझे धरा पर न आने देना)
माना मृत्यु को पाकर,
मिट्टी में मिल जाती है ये मांस के टुकड़े हमारी,
फिर भी ये हैं तो मुझसे भी प्यारी,
क्योंकि इसे देखकर ही तो आई है आज मौत हमारी
इसे देखकर ही तो आई है………..
(सुन लो करुणा मेरी माता, मुझे धरा पर न आने देना)
एक बात मुझे बता दो माँ,
बस इतना मुझे समझा दो माँ
अगर होती बनी मांस की ये मूर्ति सारी,
तो क्या नहीं आती इनकी मौत की बारी
तो क्या नहीं आती…….
सुन लो करुणा मेरी माता,
मुझे धरा पर न आने देना ,
जन्म से पहले कोख में ही,
मौत की नींद सुला देना।
गौरी तिवारी, भागलपुर बिहार