मुझे दर्द सहने की आदत हुई है।
मुझे दर्द सहने की आदत हुई है।
उसे इस कदर चाहने जो लगा हूं।।
समझना नहीं मुझे अब किसीको।
उसे इस कदर सोचने जो लगा हूं।।
मांगता हूं माफी खुदा से हमेशा।
उसे इस कदर पूजने जो लगा हूं।।
तन्हा नहीं है जिंदगी अब मेरी भी।
उसमें इस कदर रहने जो लगा हूं।।
आने पर उनके गम तो जाने लगे।
ख्वाहिशों को जबसे जीने लगा हूं।।
लगने लगा है वह खुदा सा मुझें।
उसे इस कदर मानने जो लगा हूं।।
अपनो से दूरियां कर ली है बहुत।
संग में उसके जबसे रहने लगा हूँ।।
दिल आशना हो गया है मेरा भी।
उसमें खुद को देखने जो लगा हूं।।
करने लगा अबतो शायरी मैं भी।
उसे इस कदर जानने जो लगा हूं।।
मोहब्बत खुदा से यूँ होने लगी है।
उसको रब सा देखने जो लगा हूं।।
कहने लगे आशिकी चिश्ती मुझे।
सूफियों सा मैं नाचने जो लगा हूं।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ