“मुझे कुछ बन जाने दो माँ”
पेन्सिल रहने दो हाथों में
चौका बेलन न थमाओ माँ
मुझे स्कूल ड्रेस में सजने दो
घूंघट,चुन्नी न ओढ़ाओ माँ
न हाथ रंगों हल्दी,मेहंदी से
इन्हें स्याही से रंग जाने दो माँ
नींव बनूँगी दो-दो घर की
पैरों पर खड़ी हो जाने दो माँ
स्कूल के जूते मौजे दिलवा दो
पायल,महावर से न बांधो माँ
नन्ही चिड़िया मैं उड़ना चाहूँ
सपनों के पंख फैलाने दो माँ
बस्ते का बोझ उठा लुंगी
पर रिश्ते कैसे मैं संभालूंगी
भाभी,बहु अभी नहीं बनना
डॉ.,इंजी. बन जाने दो माँ
विवाह के मंगल गीत न गाओ
खुद समझो सबको समझा दो माँ
क,ख,ग, के सुर से प्यारे मुझको
मुझे पढ़ लिख आगे बढ़ जाने दो माँ….
स्वरचित
“इंदु रिंकी वर्मा”