मुझे इंसाफ चाहिए (एक माँ की पुकार)
* लोरी सुनाकर सुलाया था जिसको,
प्रभात के आते ही जगाया था जिसको, अपने हाथों से स्कूल के लिए संवारा था जिसको,
स्नेह भरे सीने से लगाया था जिसको,
* नहीं आएगा लौटकर फिर दोबारा
इस आँगन में
क्या पता था किसी को,
सुबह का सूरज निकला था
रोज की भाँति सुनहरा-सा अंबर तल पर
नहीं लौटेगा मेरा प्रद्युमन क्या पता था किसी को,
* एक नन्हें फूल से क्या दुश्मनी होगी किसी की,
मसल देगा कोई वहशी एक ही पल में उसको,
क्या नहीं उसे हुआ होगा जरा भी दर्द पीड़ा क्षणभर,
जब चाकू का वार किया होगा कनपटी से गर्दन तक उसकी,
* चीखा भी होगा, चिल्लाया भी होगा,
बचाकर अपने आप को शिकंजे से उसके भागा भी होगा मेरा प्रद्युमन,
स्कूल प्रशासन में क्या कोई नहीं एेसा था जिसने सुनी हो दर्द पीड़ा भरी मेरे लाल की पुकार उस पल,
* बचा लिया होता अगर उसको
आज होता वह मेरे सीने के पास,
शिक्षा के मंदिर में गर महफूज़ नहीं हैं बच्चे तो किस पर विश्वास करके भेजें अभिभावक अपने जिगर के टुकड़े,
* गुहार है मेरी, फरियाद है मेरी
उनसे एक बार,
छुपा रहे हैं सच्चाई को जो चार दीवारी के उस पार,
आएँ आगे स्वीकारें अपना यह कुकर्म एक बार,
इंसानियत है दिल में तो न्याय दिलवाएँ एक माँ के लाल को आज ।
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