मुझे आज़ाद रहने दो
मुझे आज़ाद रहने दो
मुझे आज़ाद रहने दो
मैं हूँ इंसान तुम जैसी
मुझे आज़ाद रहने दो।
न बांधो मुझको ज़ंजीरों से
फर्जों की वफाओं की
न बेचेनी की ज़ंजीरें
न तेरी इलतज़ाओं की
खुले में सांस लेने दो
मुझे आज़ाद रहने दो।
मैं हूँ परदार आया इस
ज़मी पर गुनगुनाने को
मै वो गुल हूँ
जो आया खुशबू लाने को
मुझे मत बांधना
रस्मों के पेचीदा से जालों में
मुझे बिंदास रहने दो
मुझे आज़ाद रहने दो।
फ़िज़ा की हर नुमाइश पर
मेरा भी उतना ही हक है
यह सूरज चाँद और धरती
तेरा रब है, मेरा रब है
मुझे शादाब रहने दो
मुझे आज़ाद रहने दो।
न है जीने से कुछ उल्फत
न मरने का कोई गम है
मेरी तन्हाईओं पर यह
तेरा पहरा कहां कम है
मुझे परवाज़ करने दो
मुझे आज़ाद रहने दो।
विपिन