मुझको मेरा हक दो
मुझको मेरा हक दो
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मुझको मेरा हक दो पापा,
बहुत कुछ कर दिखलाऊँगी !
लेने दो खुली हवा में सांसे,
बेटे से ज्यादा फर्ज निभाऊंगी !!
उड़ने दो मुझको पतंग के जैसी,
आसमान को छूकर आउंगी !!
क्यों डरते हो हैवानी दुनिया से,
अकेली सब पर भारी पड़ जाउंगी !!
करो हौसले मेरे बुलंद तुम,
अधूरे सपने पूरे कर दिखलाऊँगी !
मत आंको कम मेरी ताकत,
संतान का हर फर्ज निभाऊंगी !!
समझा देना मात मेरी को,
जिसने नारी का हर दुःख झेला है
रखे हौसला, अब दिन दूर नही,
जब तुम दोनों का सम्मान बढ़ाउंगी !!
शान हूँ मैं अपने बाबुल की,
कभी न नीचा दिखलाऊँगी !
खेले गर कोई मेरी आन से,
रूप दुर्गा, चंडी का भर जाउंगी !
समाज में फैली विषम भावना,
इसको मिटाकर दिखलाऊँगी
बेटे-बेटी में नहीं है कोई फर्क,
दुनिया में साबित कर जाऊँगी !!
!
स्वरचित :- डी के निवातिया