मुझको जीना सिखा गया कोई
सामने आइना गया कोई
मेरी कमियाँ गिना गया कोई
प्यार होता है क्या बता के मुझे
मुझको जीना सिखा गया कोई
कुछ पलों के लिये ही ठहरा था
कर के वादा निभा गया कोई
फिर से झगड़ा हुआ है दोनों में
फ़ैसला फ़िर करा गया कोई
दूसरे शह्’र से वो आया था
बिन कहे कर भला गया कोई
तब से है दर्द सर भी भारी है
राज़ अपना सुना गया कोई
जो कहीं और चल नहीं पाया
वो ही सिक्का चला गया कोई
आज मेरे ख़िलाफ़ हैं सारे
आग पीछे लगा गया कोई
रात ‘आनन्द’ ने कहाँ पी थी
सुब्ह उसको पिला गया कोई
– डॉ आनन्द किशोर