“मुखौटे”
मुखौटे ही मुखौटे दिखते हैं,
चेहरा तो कोई दिखता ही नहीं
मुस्कुराहटें भी फैली हैं यहां वहां
खुश होने के लिए कोई हंसता ही नहीं
आंखों में जीतना सूखापन
दिल में उतना भीगापन
जिस शख्स की जितनी महफिल रौनक
उस शख्स का उतना तन्हा मन
अब मन की कोई कहता ही नहीं
और मन कोई सुनता भी नहीं
शोर बहुत है सबके जीवन में
ये कहना सुनना होता ही नहीं…
स्वरचित
इंदु रिंकी वर्मा