मुखौटे ही मुखौटे
दर्द की चौखट पर
विषाद से घिरे
भरे भरे नैनों से
फिर भी भाव छुपाते
मुस्कराते मुखौटे ही मुखौटे
धर्म की आढ़ में
छलते मानव मन को
कलुष ह्रदय ले
फिर भी भाव छुपाते
मुस्कराते मुखौटे ही मुखौटे
ताश के महल से
सपने सारे ढह गये
ख्वाहिशें आँसुओं में बह गयी
फिर भी भाव छुपाते
मुस्कराते मुखौटे ही मुखौटे
ओस की बूँद सा
निर्मल ह्रदय लिये
ले स्मित की रेखा
बिन भाव छुपाये
होते लाखों में एक
मुस्काते बिन मुखौटे
मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित