मुखौटे में इंसान, कैसे हो पहचान
मुखौटा पहने है लोग यहां , सच की कैसे पहचान करे।
बाहर से अमृत है दिखता ,अंदर से पूरे गरल भरे ।
इंसान आज दुर्लभ है जग मे ,रोज ठगे घर मे मग मे।
दिल से पूरे काले है ये , बाहर से उजियारे है ये ।
आज बंचना कर बढते , सज्जन बेचारे लाचारे ।
सच छिपाने हेतु ही , नकाब मुख पर धारे है ये।
बेनकाब करना है इनको ,गलत करे और प्यारे है ये ।
विन्ध्यप्रकाश मिश्र
नरई संग्रामगढ प्रतापगढ उ प्र