मुक्त कर दो अब तो यार
मुक्त कर दो अब तो यार
कभी- कभी बह जाने दिया करो खुद को
हवाओं के साथ मौसमों के साथ
कभी- कभी थाम लिया करो खुद से
टिमटिमाते हुए तारों की एक रात
कभी -कभी सुन भी लिया करो खुद की
दिल की आवाज
शोर जब हो अन्दर बहुत ज्यादा तब
चले जाया करो किसी नदी के पास
किसी ने रोका है क्या
तो क्यों खुद से खुद को बांधे हो
मुक्त कर दो अब तो यार
सुशील मिश्रा’ क्षितिज राज ‘