मुक्ति
जुड़े जो तार जिन्दगी के
इस मिट्टी से,
मुक्ति के लिए।
तुम्हीं बोलो
मैं क्यों न हँसूं।
जीवन का मधुमास
रूप -बैराग्य बन
उपवन में बिखर जाए।
तुम्हीं बोलो
मैं क्यों न हँसूं।
मन चितवन बन
प्रस्फुटित;
बिखरे पराग ,बन
नवजीवन आधार।
तुम्हीं बोलो
मैं क्यों न हँसूं।
बन जाऊँ चकोर
जीवन की आस
तुम बूंद बनो
हो नव-बिहान
तुम्हीं बोलो, भला
मैं क्यों न हँसूं।